मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है, परिश्रम जैसा हमारा दूसरा कोई अन्य मित्र नही होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुःखी नही होता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ समस्त प्रकार के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिये है, यह परम पवित्र और संपूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है । इसके जप से सदा विजय कि प्राप्ति होती है । यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है । सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है । इससे सब पापों का नाश हो जाता है । यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है । इसका पाठ स्वयं भगवान श्रीराम ने रावण व उसकी असुरी राक्षसी सेना पर विजय प्राप्त करने के लिये किया था । ❀✿❁ जयश्रीराम ❀✿❁
महाराजाधिराज त्रिलोकचन्द्र अर्कवंशी- महाराजा त्रिलोकचन्द्र अर्कवंशी- यह एक महत्वकांक्षी शासक थे। इनका शासन उत्तर प्रदेश के बहराइच में था जिस समय यह बहराइच पर शासन किया करते थे उस समय तक यह नगरी का बड़ा हिन्दू धार्मिक महत्व हुआ करता था । महाराजा तिलोक चन्द्र (त्रिलोक चन्द्र) ने बहराइच को अपनी राजधानी बनाई तथा उसके बाद एक विशाल सेना लेकर इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के शासक विक्रमपाल को पराजित किया तथा राज्य पर अपना शासन स्थापित कर दिया । इन्द्रपस्थ (दिल्ली) को जीतने के बाद महाराजा तिलोक चन्द्र अर्कवंशी ने अपने राज्य का विस्तार किया कई अन्य राज्यों एवं नगरों को अपने अधीन कर लिया । उन्होने दिल्ली तक के सम्पूर्ण क्षेत्र और पहाड़ी क्षेत्र तक के अधिकतर भू-भाग एवं अवध के हिस्से को अपने शासन के अन्तर्गत अधीन कर लिया। इन्होने ही बालार्क में अपने कुल देवता को समर्पित बालार्क मन्दिर का निर्माण करवाया था,जिसे तुर्की आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया। इन्होने ने ही बालार्क की उपाधि भी धारण की थी। महाराजा तिलोक चन्द्र अर्कवंशी की 9 पीढ़ियों ने इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) पर अपना एकक्षत्र शासन स्थापित किया। इनकी 9 पीढियों का वर्णन इस प्रकार है- • महाराजा तिलोक चन्द्र अर्कवंशी ( शासन प्रारम्भ सन् 918 ई0 से ) • महाराजा विक्रम चन्द्र अर्कवंशी • महाराजा अमीण चन्द्र अर्कवंशी • महाराजा रामचन्द्र अर्कवंशी • महाराजा कल्याण चन्द्र अर्कवंशी • महाराजा भीम चन्द्र अर्कवंशी • महाराजा लोक चन्द्र अर्कवंशी • महाराजा गोविन्द चन्द्र अर्कवंशी ( इनका शासन 1092 ई0 तक रहा) • महारानी भीमादेवी ( लगभग कुछ 6 वर्षों तक शासन किया) महाराजा गोविन्द चन्द्र अर्कवंशी अपनी विवाह के कुछ समय पश्चात युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हो गये जिस कारण से इनकी कोई संतान नही थी अपने पति की मृत्यु के पश्चात महारानी भीमादेवी ने कुछ वर्षो तक शासन किया परन्तु पति की मृत्यु के कारण इनका मन राजकाज के कार्यों में नही लगा शोक से इनका स्वास्थय बिगड़ता जा रहा था इस कारण से इन्होने अपना विशाल साम्राज्य अपने अध्यात्मिक गुरू हरगोविन्द दास को दान में देकर मृत्यु का वरण किया और अपनी मृत्यु से पहले यह कहा कि इस विशाल साम्राज्य को किसी योग्य शासक को सौपने की बात कही थी। वह योग्य शासक थे अनंगपाल तोमर जिनके पूर्वज अरावली की पहाडियो पर स्थित थे, चूंकि महाराजा तिलोक चन्द्र अर्कवंशी और महाराजा अनंगपाल तोमर के पूर्वजों में घनिष्ठ मित्रता थी इसलिये इन्हे ही अर्कवंश के इस विशाल साम्राज्य का पालन पोषण करने का अधिकार प्राप्त हुआ तथा इस साम्राज्य के पालन पोषण के लिये इन्हे “अर्कपाल” या “सूरजपाल’ के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा। 1163 के आसपास अजमेर के चौहान शासक ने तोमर राजा को पराजित कर दिल्ली पर अपना शासन स्थापित किया जिसमें इसी चौहान कुल मे आगे चल कर महाराजा पृथ्वीराज चौहान का जन्म हुआ। महाराजा तिलोक चन्द्र अर्कवंशी द्वारा निर्मित बालार्क मन्दिर में प्रत्येक वर्ष के जून माह में एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता था यह मेला भगवान सूर्यदेव की आराधन करने के लिये समर्पित किया जाता था।
और जाने12/12/2015महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी यह नाम ही विदेशी आक्रमणकारी शत्रुओं व मुगलों के लिये बहुत बड़ी काल के समान था। इन्होनें अवध उत्तर प्रदेश के कौशल(कोसल) राज्य के अन्तर्गत आने वाले सल्हीयपुर नामक नगर को बसाया था जिसे आज संडीला के नाम से जाना जाता हैं, यह सल्हीयपुर(संडीला) आज के भू-भाग से कई अधिक क्षेत्रफल में विस्तृत रूप में इनके शासित राज्य के रूप में फैला हुआ था। सरकारी कागजातों में तो इन्हें Lords Of The Land कह कर सम्बोधित किया गया हैं तथा बताया गया है कि संडीला(सल्हीयपुर) क्षेत्र के स्वामी अर्कवंशी हुआ करते थे, एवं संडीला में वर्तमान में जितने भी खंडहर, कुण्ड, मंदिर है वह सब अर्कवंशीयों द्वारा निर्मित हैं। जब महाराजा पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर मोहम्मद गोरी गजनी ले गया था तो भारत के उस खाली हो चुके नेतृत्व की बागडोर को एक लम्बे अंतराल के बाद महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी ने संभाली जिन्होनें आक्रमणकारी व पैर पसार चुके मुगलों से लोहा लेते हुए अपने कुशल युद्ध नीति व रण कौशल के बल पर अपने राज्य का विस्तार किया, दतली, मलीहाबाद(मल्हीयपुर), काकोरी, कल्यानमल, हरदोई से लेकर मुरादाबाद आदि स्थानों तक अपना प्रभाव छोड़ा तथा अपनी प्रजा का कुशल पालन किया तब जब भारतवर्ष पर मुगलों का अत्याचार बढ़ता जा रहा था। इनके शासन काल में शत्रुओं से रक्षा के लिये नगर की इतने कड़े सुरक्षा के बंदोबस्त हुआ करते थे की शत्रु सीमा तक पहुँचने से पहले ही अपने प्राण त्याग देता था। नगर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये इन्होनें कई गढ़ियों का निर्माण करवाया था जैसे- गढ़ी जिन्दौर, तरौना, नौगढ़, सल्हीयजना, सामदखेड़ा, मुसलेवा(परिवर्तित नाम) सरसेंडी, दातली, बिजनौरगंज, मुरादाबाद, लौहगांजर पर ये गढियां टीलों के रूप में इस महान शासक की कुशल युद्ध नीति का प्रमाण दे रही हैं। इनकी इसी नीति से तुर्की आक्रमणकारी बहुत परेशान रहते थे। कई बार विध्वंसक युद्ध हुआ लेकिन इनकी युद्ध कौशल से तुर्की सदैव डरते थे। सन् 1236 ई0 के शासन काल में तुर्की शम्सुद्दीन अल्तमश(इल्तुमिश) के द्वारा कई बार आक्रमण किये गये और असफल रहे अर्कवंशियों के द्वारा 160 वर्षों तक सण्डीला और अन्य क्षेत्रों पर अर्कवंश अधिपति रहे। मुहम्मद शाह तुगलक के राज करने से परेशान लोगों ने भागकर अपनी जान बचाने के लिये सण्डीला राज्य में शरण लेने लगें। यह नगर देखते देखते काफी विशाल भू-भाग में व्याप्त हो चुका था और जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा हुआ आक्रमणकारी तुगलक को इस राज्य के विस्तार व खुशहाली के बारे में पता चला तो सण्डीला पर आक्रमण करने आया और असफल रहा फिर उसने फतेहपुर के लिये योजना बनाई जिसमें वह पुनः असफल रहा फतेहपुर में भी अर्कवंशीयों का शासन था दोबारा उसने 1374 ई0 में अपने पीर भाई सैय्यद मखदूम अलाउद्दीन को सण्डीला(सल्हीयपुर) पर आक्रमण कर जीतने की आज्ञा दी सन् 1374 ई0 में मखदूम अलाउद्दीन की विशाल क्रूर आक्रमणकारी सेना ने सल्हीयपुर(सण्डीला) पर आक्रमण कर दिया। जिसमें सैय्यद मखदूम अलाउद्दीन के तीनों बेटों को महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी के पुत्र ने अपनी तलवार से टुकड़े-टुकड़े कर दिये। इस्लामिक आक्रमणकारियों ने अपनी यह दशा देखकर भागने लगी लेकिन इसने अपनी सेना को मर मिटने की आज्ञा दी फिर क्या था युद्ध भीषण से विकराल हो चुका जितना महाराजा की सेना इन आक्रमणकारियों को गाजर-मूली की तरह काटती जा रही थी उतनी ही इनकी संख्या बढ़ती जा रही थी युद्ध में छल कपट की नीतियाँ अपनाई जाने लगी जिसमें बहुत से महाराजा सल्हीय सिंह अर्कवंशी की सेना के सैनिक वीरगति को प्राप्त होने लगे यह देखकर क्षत्राणियों नें अपने स्तर से युद्ध लड़ना शुरू कर दिया पर आक्रमणकारी सेना जितनी कटती जाती उतनी और बढ़ती जा रही थी युद्ध में जब हार दिखने लगी तब क्षत्राणियों ने जौहर कर लिया अतः जब महल में कोई नही बचा तो इन आक्रमणकारियों ने महलों को, मंदिरों को गढियों को नष्ट कर दिया।
और जाने14/3/2016महाराजा महिपति सेन अर्कवंशी का शासन क्षेत्र फतेहपुर के अन्तर्गत आता था इनका शासन कार्यकाल महाराजा दलपतसेन अर्कवंशी के बाद आता है। महाराजा महिपति सेन अर्कवंशी ने अपने शासनकाल कुण्ड, कुओं व सूर्य मन्दिरों का निर्माण करवाया। इनके शासन काल के समय भगवान सूर्य (अर्क) व भगवान शिव की उपासना का बड़ा केन्द्र फतेहपुर को माना जाता था जिसका प्रमाण आज भी फतेहपुर में उपस्थित अर्कवंशी शासकों के खण्डहरों में परिवर्तित हो चुके महलों की निशानी देखने को मिल जाती हैं तथा यहाँ पर कई प्राचीन मूर्तियां भी अवशेष के रूप मे देखने को मिल जाती हैं यह सभी मूर्तियां भगवान शिव व भगवान अर्कनारायण की हैं। इस विशाल क्षेत्र पर इनका शासन करना अर्कवंशीयों की सम्प्रभुता, बाहुबल और इनकी वीरता को दिखाता हैं जिसका कोई भी तत्कालीन शासक अर्कवंशीयों के अधिकार क्षेत्र को चुनौती नही दे पाता था।
और जाने8/1/2016महाराजा खड्ग सेन अर्कवंशी ने खागा (खगपुरी) को बसाया था इन्हें महाराजा खड्ग सिंह अर्कवंशी के नाम से भी जाना जाता हैं। यह महाराजा दलपतसेन के पुत्र थे महाराजा दलपतसेन महाराजा कनकसेन की रक्त कुटुम्ब से सम्बन्ध रखते थे और महाराजा कनकसेन महाराजा कुश की रक्त पीढ़ी से सम्बन्ध रखते थे महाराजा कुश भगवान श्रीराम के पुत्र थे। अर्कवंशीयों नें फतेहपुर के विशाल भू-भाग पर अपना अधिपत्य घोषित कर लिया था जिसमें अयाह, खागा(खगपुरी) भी सम्मिलित थे यहा तक की इलाहाबाद के विशाल भू-भाग पर अपना अधिकार कर दिया था महाराजा खड्गसेन के शासन के समय। इतने विशाल भू-भाग पर अपना शासन स्थापित करने के पश्चात अर्कवंशियों ने अवध के दोआबा क्षेत्र (गंगा व यमुना) पर दशाश्वमेघ यज्ञ भी करवाया अपना बाहुबल अपनी प्रभुसत्ता प्रमाणित करने के लिये। इनका महल कुकरा कुकरी तालाब के पास था परन्तु अब वहाँ सिर्फ खंडहर मौजूद है यह राज्य अपने शासनकाल में बहुत शक्तिशाली हुआ करता था।
और जाने10/2/2016अयोध्या भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक अति प्राचीन धार्मिक नगर है। यह फैजाबाद जिला के अन्तर्गत आता है। यह सरयू नदी (घाघरा नदी) के दाएं तट पर बसा है। प्राचीन काल में इसे 'कौशल देश' कहा जाता था। अयोध्या हिन्दुओं का प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक है।
और जाने12/4/2016महाराजा इक्ष्वाकु के कुल में ही सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ने जन्म लिया और उन्होंने अपना सम्पूर्ण राजपाट विश्वामित्र को दान में दे दिया था । ऐसी ही घटना इसी कुल में पुनः घटी जब अर्कवंश के महाराजा गोविन्द चन्द्र अर्कवंशी ने इंद्रप्रस्थ पर २१ वर्ष ७ माह १२ दिवस तक शासन किया।
और जाने6/12/2016 आपके द्वारा प्रदान करायी गयी इस अच्छी पहल का हम स्वागत करते है एवं अर्कवंश से सम्बन्ध रखने वाली हर जानकारी को उपलब्ध कराने के लिये आपका बहुत-2 धन्यवाद , अर्कवंश की कीर्ति सदा बनी रहे। जय अर्कवंश , जय सूर्यवंश , जय रघुवंश , जय इक्ष्वाकुवंश । जय श्रीराम
Vikramaditya Singh Pundir
Jai ho Arkavansh ki Jai Shri Ram aap ne jo ye site banai hain bahut hi badhiya hain Arkavansh se sambandhit itihaas ko jankaar bahut khusi ho rhi hain evam aur janne ki utsukta badhti jaa rhi hain apne purvajo k baare me bahut bahut dhanyavad aapke dwara kiye gye is mahaan karya k liye JaiShriRam
सप्तवर्धन सिंह अर्कवंशी
Jisse bhaybheet hokar mugal sahme sahme rahte the us mahapratapi mahaprakrami vansaj ko Arkavanshi kahte the
Ajeet Singh Arkavanshi
हरे रंग का सपना पाले आया था मखदूम अलाउद्दीन माटी मे सल्हीय सुपुत्र ने उसके तीनों जिहादी बेटों के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिये थे अपनी लहराती खड्ग तलवार से
Shrimant Singh Arkavanshi
जय हो सूर्यवंश अर्कवंश रघुवंश इक्ष्वाकुवंश की, बहुत ही समृद्धशाली और गौरवान्वित करने वाला इतिहास है उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद
नरेन्द्र सिंह रघुवंशी
बहुत ही गौरवशाली इतिहास है अर्कवंशी भाईयों का मैं कमलेन्द्र सिंह कौशिक प्रणाम करता हूँ सभी अर्कवंशी भाईयों को जय श्रीराम
कमलेन्द्र सिंह कौशिक